ऋष्यशृङं द्विजश्रेष्ठं वरयिष्यति धर्मवित्,
यज्ञार्थां प्रसवार्थं च स्वर्गार्थं च नरेश्वरः.
वह धर्मवित् (दशरथ) द्विजश्रेष्ठ ऋष्यशृङ का यज्ञ, प्रसव, और स्वर्ग के लिये वरण करेगा. इसका एक अर्थ यह हो सकता है कि शांता को प्रसव करवाने में विशेषज्ञता रही हो. दूसरा अर्थ यह हो सकता है कि क्षत्रिय-ब्राह्मण द्वेष से प्रेरित रचनाकार क्षत्रियों को वीर्यहीन साबित करने की मंशा रखता हो.
'लभते च स तं कामं द्विजमुख्याद्विशांपतीः
पुत्राश्च भविष्यंति चत्वारः अमितविक्रमाः.'
उस द्विजमुख्य से कामना के अनुकूल वह राजा चार महावीर (अमितविक्रम) पुत्र की प्राप्ति करेगा'.
क्योंकि इस प्रकार की मंशा का प्रकटिकरण कई प्रसंगों में देखा जाता है. जैसे भागवतपुराण 09:01:13 कहता है
अप्रजस्य मनोः पूर्वं वसिष्ठो भगवान् किल,
मित्रावरुणयोरिष्टिं प्रजार्थमकरोत् प्रभुः.
तत्र श्रद्धा मनोः पत्नी होतारं समयाचत,
दुहित्रर्थमुपागम्य प्रणिपत्य पयोव्रता.'
अर्थात्, 'कहा जाता है कि पहले मनु संतानहीन था. भगवान वसिष्ठ ने संतान के लिये मित्रावरुण यज्ञ किया. वहाँ मनु की पत्नी श्रद्धा ने होतृ के पास जाकर एक पुत्री की याचना की.'
अगले दो श्लोकों में इस यज्ञ के होता और अध्वर्यु के सम्मिलित 'व्यभिचार' का उल्लेख है. यह अजीब बात है कि यज्ञकर्ता मनु है, और उसकी पत्नी श्रद्धा को अपने पति की इच्छा के विरुद्ध होतृ को 'व्यभिचार' के लिये उकसाने की बात लिखना लेखक के नकारात्मक मंतव्य का द्योतक है. इसी 'व्यभिचार' को इला के जन्म का कारण बताया गया है. भागवतपुराण से पहले संकलित पौराणिक आख्यानों में इला की उत्पत्ति की अलग कहानी दी गयी है. जैसे जैसे पौराणिक आख्यानोंं के नये संस्करण सामने आते गये, क्षत्रिय द्वेष की प्रेरणा बढती गयी है.
इस प्रकार का उल्लेख दोहरे अर्थ को धारण करता है. एक अर्थ निश्चय ही अपमानजनक उद्देश्य से प्रेरित है.
भरत द्वारा भरद्वाज (वितथ) को गोद लेने के संदर्भ में भी बाद में रचित पौराणिक आख्यान अपमानजनक अर्थयुक्त है.
महाभारत आदिपर्व 94:18 में यह कहा गया कि,
‘ततो महद्भिः क्रतुभिरीजानो भरतस्तदा,
लेभे पुत्रं भरद्वाजाद्भुमन्युं नाम भारत’,
अर्थात्, 'यज्ञ में भरद्वाज से मन्यु नामक पुत्र प्राप्त किया.'
अन्यत्र वसिष्ठ को राम के पूर्वज ऐक्ष्वाक कल्माषपाद की पत्नी में अश्मक नामक पुत्र उत्पन्न करता हुआ बताया गया है. जबकि इसी कहानी में कल्माषपाद और विश्वासमित्र द्वारा वसिष्ठ के सौ पुत्रों के विनाश का वर्णन भी है !
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और दक्ष के साथ तो और भी अन्याय किया गया है. गाली-गलौज, अपमान की हद पाई जाती है. इसे अलग से देखना होगा !